अन्य G20 देशों ने क्रिप्टो सेक्टर को मजबूत प्रगतिशील नीतियों के तहत लाने के लिए उठाए हैं महत्वपूर्ण कदम
नई दिल्ली, 21 जनवरी 2025
भारत की G20 अध्यक्षता को एक वर्ष बीत चुका है, पर क्रिप्टो सेक्टर को लेकर की गई कई घोषणाओं और वादों के बावजूद, भारत इस सेक्टर की निगरानी और रेगुलेशन के लिए ठोस नीति बनाने में असफल रहा है। दुनिया भर में वैश्विक क्रिप्टो और वर्चुअल डिजिटल एसेट्स (VDA) का परिदृश्य तेजी से विकसित हो रहा है, लेकिन भारत अब भी इस क्षेत्र में निर्णायक नीतिगत कदम उठाने में पिछड़ता नज़र आ रहा है। जहां अन्य G20 देश रेगुलेशन की दिशा में बड़े कदम उठा रहे हैं, भारत की निष्क्रियता इस उद्योग के प्रति उसकी गंभीरता पर सवाल उठा रही है।
उदाहरण के लिए, अर्जेंटीना ने जून 2024 में कर माफी कानून पारित किया, जिसके तहत क्रिप्टो एसेट्स को टैक्स फ्रेमवर्क में शामिल किया गया है। यह निवेश आकर्षित करने के साथ-साथ उन संपत्तियों की घोषणा को अनिवार्य बनाता है जो देश के बाहर रखी गई हैं। ब्राज़ील ने स्थिर मुद्रा (स्टेबलकॉइन) और एसेट टोकनाइजेशन के रेगुलेशन के लिए 2025 तक कानून लाने की योजना बनाई है। वहीं, ऑस्ट्रेलिया ने डिजिटल एसेट्स मार्केट रेगुलेशन बिल को आगे बढ़ाते हुए 2025 तक स्टेबलकॉइन के लिए एक औपचारिक नियामक ढांचा तैयार करने की घोषणा की है।
बात करें यूरोप की तो यूरोपीय देशों में भी क्रिप्टो रेगुलेशन को लेकर प्रगतिशीलता देखने को मिली है। फ्रांस ने लाइसेंसिंग आवश्यकताओं को मजबूत किया है और वैश्विक स्थिर मुद्रा जारीकर्ताओं को अपने बाजार में प्रवेश की अनुमति दी है। इसी तरह, यूके की वित्तीय प्राधिकरण (FCA) ने उपभोक्ता संरक्षण और स्थिर मुद्रा निगरानी को प्राथमिकता देते हुए 2026 तक एक चरणबद्ध रोडमैप पेश किया है।
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भारत के अलावा बात करें अन्य एशियाई देशों की तो इन देशों ने भी क्रिप्टो रेगुलेशन में उल्लेखनीय प्रगति की है। जापान ने कर व्यवस्था में सुधार और विकेंद्रीकृत तकनीकों को बढ़ावा देने के लिए वेब 3 व्हाइट पेपर पेश किया है। दक्षिण कोरिया ने जुलाई 2024 से वर्चुअल एसेट यूजर प्रोटेक्शन एक्ट लागू किया है , जिसमें डिजिटल संपत्तियों को औपचारिक रूप से परिभाषित किया गया है। यहां तक कि दक्षिण अफ्रीका जैसे देश, जो अब तक इस क्षेत्र में पीछे थे, ने एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग (AML) नियम लागू किए हैं और स्थिर मुद्रा रेगुलेशन की योजना बनाई है।
दूसरी ओर, भारत की निष्क्रियता एक बड़ी चिंता का विषय है। एक तकनीकी रूप से सक्षम जनसंख्या और तेजी से बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था के बावजूद, क्रिप्टो नीति की अस्पष्टता-नवाचार, विदेशी निवेश और उपयोगकर्ता संरक्षण को नुकसान पहुंचा रही है। यह न केवल देश की आर्थिक स्थिति के लिए चिंता की बात है, बल्कि भारत की वैश्विक वित्तीय नेतृत्व क्षमता पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा कर रही है।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB) के संयुक्त रोडमैप ने क्रिप्टो रेगुलेशन की अनिवार्यता को रेखांकित किया है। जबकि अमेरिका और यूरोपीय संघ इन वैश्विक मानकों को अपनाने में सक्रिय हैं, भारत की देरी उसे वैश्विक डिजिटल वित्तीय तंत्र में अलग-थलग कर सकती है।
भारत सरकार ने भले ही क्रिप्टो पर एक चर्चा पत्र जारी करने की घोषणा की हो, लेकिन वह अभी भी इस दिशा में ठोस कदम उठाने से कोसों दूर है। अब समय आ गया है कि सरकार न केवल निवेशकों की सुरक्षा के लिए नियम बनाए, बल्कि नवाचार और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को भी बढ़ावा दे। अन्यथा, यह चूक भारत के एक उभरते हुए क्षेत्र में नेतृत्व करने का मौका गंवा सकती है।
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