स्वीडन अपने नागरिकों को स्वेच्छा से देश छोड़ने और इसके लिए अच्छा खासा पैसा देने का प्रस्ताव दे रहा है, जिसे “voluntary repatriation” कहा जा रहा है।
नई दिल्ली, 17 अगस्त 2024
क्या आप अपने देश को छोड़ना चाहेंगे? यह सवाल सुनकर शायद ज्यादातर लोगों का जवाब “नहीं” होगा। लेकिन अगर आपको इसके बदले में पैसे दिए जाएं और यात्रा का खर्चा भी उठाया जाए, तो? यह विचार थोड़ा अजीब जरूर लग सकता है, लेकिन यूरोप के देश स्वीडन ने अपने नागरिकों को कुछ ऐसा ही प्रस्ताव दिया है। स्वीडन की इमीग्रेशन मिनिस्टर मारिया माल्मर स्टेनगार्ड ने हाल ही में इस अनोखे प्रस्ताव को पेश किया है, जिसके तहत विदेश में जन्मे स्वीडिश नागरिक यदि स्वेच्छा से देश छोड़ना चाहें, तो उन्हें इसके लिए आर्थिक सहायता और यात्रा खर्च दिया जाएगा।
स्वैच्छिक इमिग्रेशन योजना का विस्तार
स्वीडन में पहले से ही एक स्वैच्छिक इमिग्रेशन योजना लागू है, जिसके तहत शरणार्थियों और प्रवासियों को देश छोड़ने के लिए 10,000 स्वीडिश क्राउन (लगभग 80,000 रुपये) की आर्थिक सहायता दी जाती है। अगर कोई बच्चा स्वीडन छोड़कर जाता है, तो उसे 5,000 स्वीडिश क्रोना (लगभग 40,000 रुपये) मिलते हैं। यह राशि एकमुश्त दी जाती है, और इसके साथ-साथ यात्रा का खर्च भी सरकार द्वारा उठाया जाता है। हालांकि, अब इस योजना का विस्तार करते हुए इसे स्वीडिश नागरिकों के लिए भी लागू करने की तैयारी की जा रही है।
नए प्रस्ताव के मुख्य बिंदु
नए प्रस्ताव के अनुसार, अब इस योजना में सभी नागरिकों को शामिल किया जाएगा। इसका मतलब यह है कि स्वीडिश नागरिक भी इस योजना का लाभ उठा सकते हैं। हालांकि, सरकार ने इस प्रस्ताव में अनुदान राशि को 10,000 स्वीडिश क्रोना से बढ़ाने के सुझाव को खारिज कर दिया है। सरकार का मानना है कि ऐसा करने से यह संदेश जा सकता है कि स्वीडन अपने नागरिकों को पसंद नहीं करता, जो कि गलत होगा।
स्वीडन, दुनिया के विभिन्न देशों के लोगों के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य रहा है। पिछले 20 वर्षों में स्वीडन की आबादी दोगुनी हो गई है, और प्रवासियों की संख्या 20 लाख से भी अधिक हो गई है, जो कि देश की कुल आबादी का पांचवां हिस्सा है। इस प्रवासी आबादी के बढ़ते दबाव को देखते हुए, स्वीडन सरकार ने 2015 में कुछ कड़ी नीतियों को लागू किया था, लेकिन इनका भी खास असर नहीं हुआ।
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50 वर्षों में पहली बार: स्वीडन छोड़कर जा रहे अधिक लोग
पिछले साल, स्वीडन से बाहर जाने वाले लोगों की संख्या ने देश में आकर बसने वालों की संख्या को पार कर लिया था। यह पिछले 50 वर्षों में पहली बार हुआ है। इमीग्रेशन मिनिस्टर मारिया माल्मर स्टेनगार्ड का कहना है कि कई लोग स्वीडन में आ तो जाते हैं, लेकिन वे यहां के समाज में समायोजित नहीं हो पाते। ऐसे लोगों के पास अब यह विकल्प होगा कि वे स्वेच्छा से देश छोड़कर जा सकते हैं, और इसके लिए उन्हें आर्थिक सहायता भी मिलेगी।
स्वीडन में ऐसे कई लोग हैं जिनके बच्चे इराक, सीरिया, और सोमालिया जैसे देशों में पैदा हुए थे, लेकिन अब वे स्वीडन में आकर बसना चाहते हैं। ऐसे लोगों के लिए भी सरकार का यह प्रस्ताव लाभकारी हो सकता है।
आलोचनाएं और विचार
इस प्रस्ताव के सामने आने के बाद, विभिन्न लोगों और संगठनों ने इस पर अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और मोदी सरकार के सलाहकार संजीव सान्याल ने इस पर अपनी टिप्पणी करते हुए यूरोपीय देशों को आईना दिखाया है। उन्होंने एक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा कि स्वीडन अपने ही नागरिकों को स्वेच्छा से देश छोड़ने का प्रस्ताव दे रहा है, जो पहले से स्वीडिश पासपोर्ट धारक हैं। उन्होंने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह किस तरह का लोकतंत्र है?
सान्याल ने व्यंग्यात्मक रूप से कहा कि @vdeminstitute का सुपरकंप्यूटर यह गणना करके बता सकता है कि इस कदम के लिए स्वीडन को डेमोक्रेसी पैरामीटर में कितने अंक दिए जाने चाहिए।
भविष्य की दिशा
स्वीडन का यह प्रस्ताव न केवल देश के भीतर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय बन गया है। यह प्रस्ताव एक अद्वितीय और विवादास्पद कदम है, जो देश के समाज और अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करेगा, यह देखने वाली बात होगी।
सरकार का यह कदम जहां एक ओर प्रवासी समस्या को हल करने का एक प्रयास हो सकता है, वहीं यह भी सवाल उठाता है कि क्या इस प्रस्ताव का असली मकसद कुछ और है? क्या स्वीडन वास्तव में उन लोगों को बाहर निकालना चाहता है जो यहां के समाज में समायोजित नहीं हो पा रहे हैं, या यह सिर्फ एक अस्थायी समाधान है?
इन सवालों के जवाब आने वाले समय में ही मिलेंगे, लेकिन फिलहाल, स्वीडन का यह प्रस्ताव एक नई दिशा में सोचने का मार्ग प्रशस्त करता है।
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