प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में पहली बार साहित्य उत्सव और पुस्तक मेला – 2 मार्च तक चलेगा आयोजन

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में पहली बार साहित्य उत्सव और पुस्तक मेला – 2 मार्च तक चलेगा आयोजन

नई दिल्ली, 1 मार्च 2025

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में पहली बार तीन दिवसीय साहित्यिक उत्सव और पुस्तक मेले का आयोजन किया गया। 28 फरवरी से 2 मार्च तक चलने वाले इस मेले का उद्देश्य पत्रकारिता और साहित्य के गहरे रिश्ते को मजबूत करना और पत्रकारों व लेखकों को एक ऐसा मंच देना है, जहाँ वे अपने विचारों और लेखन को साझा कर सकें।

पहले दिन: पुस्तक विमोचन और फ्री प्रेस की चुनौतियों पर चर्चा

उत्सव के पहले दिन कई वरिष्ठ पत्रकारों और लेखकों की किताबों का विमोचन किया गया और पत्रकारिता से जुड़े अहम मुद्दों पर चर्चा हुई। इस मेले में करीब 80 प्रमुख प्रकाशकों और बुक स्टोर्स ने भाग लिया, जिनमें राजकमल प्रकाशन, वाणी प्रकाशन, NBT, दिल्ली प्रेस और मिडलैंड जैसी प्रतिष्ठित संस्थाएँ शामिल रहीं।

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के अध्यक्ष गौतम लाहिड़ी ने आयोजन का उद्घाटन किया। उन्होंने कहा कि यह पहल पत्रकारों और लेखकों के बीच के रिश्ते को और मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने यह भी कहा कि पत्रकारिता केवल समाचारों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह विचारों और विश्लेषण का भी माध्यम है। यह आयोजन पत्रकारों को उनकी मीडिया रिपोर्टिंग से आगे बढ़कर अपनी लेखनी को प्रस्तुत करने का अवसर देगा।

प्रेस क्लब के महासचिव नीरज ठाकुर ने इस आयोजन में सहयोग देने वाले सभी लोगों का धन्यवाद किया। उन्होंने कहा, “अब तक प्रेस क्लब पत्रकारों की भोजन की जरूरत पूरी करता था, लेकिन अब यह उनकी ज्ञान की भूख भी मिटाएगा।” उन्होंने आश्वासन दिया कि भविष्य में भी ऐसे आयोजन होते रहेंगे।

पहले दिन “फ्री प्रेस की चुनौतियाँ” विषय पर एक महत्वपूर्ण पैनल चर्चा हुई, जिसमें हरतोष सिंह बल, उर्मिलेश, विनोद शर्मा, परंजय गुहा ठाकुरता, आशुतोष भारद्वाज और प्रज्ञा सिंह जैसे वरिष्ठ पत्रकारों ने भाग लिया। चर्चा का संचालन पत्रकार संगीता बरुआ ने किया।

इस चर्चा में कई महत्वपूर्ण बिंदु उठाए गए जिनमें विनोद शर्मा ने स्वतंत्र मीडिया की रक्षा और पेशेवर जिम्मेदारियों को निभाने के लिए पत्रकारों को एक नया प्लेटफॉर्म बनाने की जरूरत बताई। हरतोष सिंह बल ने न्यूज़रूम में रिपोर्टिंग के स्तर में गिरावट और विविधता की कमी को एक गंभीर चुनौती बताया। उर्मिलेश ने कहा कि राज्य का बढ़ता हस्तक्षेप पत्रकारिता के लिए स्थायी खतरा बन चुका है। परंजय गुहा ठाकुरता ने इस बात पर चिंता जताई कि सरकार की आलोचना करने पर मीडिया संस्थानों पर दबाव बढ़ता जा रहा है, जिससे पत्रकारों के लिए निष्पक्ष रिपोर्टिंग करना मुश्किल हो रहा है। वहीं, आशुतोष भारद्वाज ने हिंदी पत्रकारिता की चुनौतियों की ओर इशारा करते हुए कहा कि कई डिजिटल प्लेटफॉर्म्स में गहरी रिसर्च और मूल रिपोर्टिंग की कमी दिख रही है।

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में पहली बार साहित्य उत्सव और पुस्तक मेला – 2 मार्च तक चलेगा आयोजन

दोपहर में “नफरत और दमन पर फील्ड रिपोर्टिंग” विषय पर एक और महत्वपूर्ण सत्र आयोजित किया गया। इसका संचालन पत्रकार सुरभि कांगा ने किया, और इसमें पत्रकार अलीज़ा नूर, शिवांगी सक्सेना, सौम्या राज और आयुष तिवारी ने अपने अनुभव साझा किए।

पत्रकारों ने बताया कि जमीनी रिपोर्टिंग के दौरान उन्हें धमकियाँ, हिंसा और प्रशासनिक बाधाओं का सामना करना पड़ा। कई बार स्थानीय प्रशासन ने साम्प्रदायिक हिंसा के पीड़ितों तक उनकी पहुँच रोकने के लिए बैरिकेडिंग कर दी, जिससे स्वतंत्र और निष्पक्ष रिपोर्टिंग करना मुश्किल हो गया। कुछ पत्रकारों ने बताया कि मुस्लिम पत्रकारों को अपनी पहचान छिपाकर रिपोर्टिंग करनी पड़ी, ताकि वे किसी पूर्वाग्रह का शिकार न हों।

किताबों का विमोचन और ‘स्पॉटलाइट’ कोना

उत्सव के पहले दिन कई प्रमुख पत्रकारों और लेखकों की किताबों का विमोचन किया गया, जिनमें शामिल थीं:

  • जय सिंह की किताब – प्रसिद्ध गीतकार शैलेंद्र पर आधारित।
  • आज़ाद मिर्ज़ा की किताब – भारतीय मदरसों पर शोध।
  • रोहिणी सिंह की किताब “मेरा दूसरा जनम” – उर्दू भाषा में प्रकाशित।
  • सुहैल अंजुम की किताब “उर्दू सहाफत के फरोग में ग़ैर मुस्लिम सहाफियों की ख़िदमत” – उर्दू पत्रकारिता पर आधारित।
  • मासूम मुरादाबादी की किताब – जीडी चंदन पर आधारित।

इस आयोजन में “स्पॉटलाइट” नामक एक विशेष कोना भी तैयार किया गया, जहाँ उन लेखकों की किताबें प्रदर्शित की गईं, जो इस उत्सव का हिस्सा थे।

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया का यह साहित्यिक महोत्सव पत्रकारिता और लेखन को नई दिशा देने के साथ-साथ विचारों और संवाद को भी नया मंच प्रदान कर रहा है। यह न केवल पत्रकारों, बल्कि साहित्य प्रेमियों और शोधकर्ताओं के लिए भी एक बेहतरीन अवसर है, जहाँ वे नए विचारों से रूबरू हो सकते हैं और लेखन की दुनिया को और करीब से समझ सकते हैं।

आने वाले दो दिनों (1 मार्च और 2 मार्च) में और भी रोचक चर्चाएँ, विचार-विमर्श और किताबों के विमोचन जारी रहेंगे।

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