क्रिप्टो इकोसिस्टम के बाहर स्टेबलकॉइन्स का उपयोग अब भी बेहद सीमित, बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स की नई रिपोर्ट में खुलासा

स्टेबलकॉइन्स का क्रिप्टो इकोसिस्टम के बाहर इस्तेमाल अभी भी सीमित, अधिकांश देशों ने नियम बनाए या बनाने की प्रक्रिया शुरू की – BIS की नई रिपोर्ट में खुलासा

admin | Published: September 24, 2025 20:07 IST, Updated: September 24, 2025 20:07 IST
क्रिप्टो इकोसिस्टम के बाहर स्टेबलकॉइन्स का उपयोग अब भी बेहद सीमित, बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स की नई रिपोर्ट में खुलासा

नई दिल्ली: अगस्त 2025 में बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स (BIS) ने सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) और क्रिप्टो पर अपनी वार्षिक सर्वे रिपोर्ट जारी की। यह सर्वे 2024 में दुनिया भर के 93 केंद्रीय बैंकों के साथ किया गया था, जिनमें से 73 बैंक पहले भी इस सर्वे में हिस्सा ले चुके थे। ये प्रतिभागी दुनिया की 78% आबादी और 94% वैश्विक आर्थिक उत्पादन का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें से 28 उन्नत अर्थव्यवस्थाओं से और 65 उभरते व विकासशील देशों से हैं।

इस सर्वे का सबसे दिलचस्प निष्कर्ष स्टेबलकॉइन्स से जुड़ा है। स्टेबलकॉइन्स ऐसे क्रिप्टो टोकन होते हैं जो किसी मुद्रा से जुड़े होते हैं। उदाहरण के लिए, USDT अमेरिकी डॉलर से जुड़ा है, EURC यूरो से और JPYC जापानी येन से। इनका इस्तेमाल ज्यादातर क्रिप्टो ट्रेडिंग में एक मध्यवर्ती साधन के रूप में किया जाता है।

सर्वे में पाया गया कि क्रिप्टो एसेट इकोसिस्टम के बाहर स्टेबलकॉइन्स का भुगतान के लिए इस्तेमाल अभी भी बेहद सीमित है। ज्यादातर केंद्रीय बैंकों ने बताया कि उनके देशों में स्टेबलकॉइन्स का उपयोग भुगतान के लिए ना के बराबर है। क्रिप्टो ट्रेडिंग या विकेंद्रीकृत वित्त (DeFi) के अलावा, इनका उपयोग मुख्यतः सीमित समूहों द्वारा घरेलू खुदरा भुगतान (20%), प्रेषण यानी रेमिटेंस (21%) और सीमा-पार खुदरा भुगतान (20%) के लिए किया जा रहा है। कुछ ही केंद्रीय बैंकों ने घरेलू थोक भुगतान (1%), घरेलू खुदरा भुगतान (1%), सीमा-पार भुगतान (3%) और रेमिटेंस (4%) में इनके इस्तेमाल की सूचना दी।

रिपोर्ट के अनुसार, 45% न्यायक्षेत्रों ने स्टेबलकॉइन्स और अन्य क्रिप्टो एसेट्स के लिए नियम बनाए हैं (2023 में यह आंकड़ा 35% था)। वहीं, 22% न्यायक्षेत्र इस दिशा में नियम बनाने की प्रक्रिया में हैं। इसका मतलब है कि दुनिया भर में लगभग दो-तिहाई देश स्टेबलकॉइन्स और अन्य क्रिप्टो एसेट्स को लेकर या तो नियम बना चुके हैं या बनाने वाले हैं। अधिकांश देशों ने क्रिप्टो और स्टेबलकॉइन्स के लिए विशेष रूप से तैयार किए गए नियम अपनाए हैं, बजाय मौजूदा वित्तीय नियमों को बदलने के। अमेरिका, हांगकांग, सिंगापुर और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों ने स्टेबलकॉइन्स के लिए विशेष नियम बनाए हैं। वहीं अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, मैक्सिको और यूरोपीय संघ ने सामान्य रूप से क्रिप्टो एसेट्स के लिए नियामक ढांचा विकसित किया है।

सर्वे में यह भी सामने आया कि केवल 8% देशों में वाणिज्यिक बैंकों ने स्टेबलकॉइन जारी किए हैं। जिन बैंकों ने यह कदम उठाया है, उनमें ऑस्ट्रेलिया का ANZ, बेल्जियम का KBC, ब्राज़ील का BTG Pactual और फ्रांस का Société Générale शामिल हैं। ये स्टेबलकॉइन आमतौर पर विशिष्ट उपयोगों के लिए जारी किए गए हैं, जैसे क्राउडफंडिंग, पेंशन भुगतान, बैंकों के भीतर धन हस्तांतरण या ग्राहकों को पारंपरिक वित्तीय प्रणाली और डिजिटल एसेट्स की दुनिया के बीच पुल का साधन प्रदान करना। पारंपरिक वित्तीय बाजार संरचनाओं द्वारा स्टेबलकॉइन्स का उपयोग (जैसे गारंटी संपत्ति, निवेश साधन या निपटान परिसंपत्ति के रूप में) नगण्य रहा है।

रिपोर्ट में जोर दिया गया है कि स्टेबलकॉइन और क्रिप्टो एसेट गतिविधियों की सीमा-रहित प्रकृति को देखते हुए देशों के लिए यह बेहद जरूरी है कि वे अंतरराष्ट्रीय मानकों और सिफारिशों को समयबद्ध और सुसंगत तरीके से लागू करें। ऐसा करने से न केवल नियामक असमानता रोकी जा सकेगी बल्कि जिम्मेदार नवाचार को बढ़ावा मिलेगा और उपभोक्ताओं व निवेशकों की सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी।

एक और महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि 48% न्यायक्षेत्रों में निजी या सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं ने 2024 के अंत तक वित्तीय या वास्तविक परिसंपत्तियों के टोकनाइजेशन पर काम किया है। हालांकि ज्यादातर मामलों में यह शोध या प्रारंभिक प्रयोग तक ही सीमित है, लेकिन इनमें से 38% देशों में टोकनाइज्ड एसेट जारी भी किए गए हैं और लगभग इतने ही देश पायलट या लाइव इश्यू पर काम कर रहे हैं। दिलचस्प रूप से, इस क्षेत्र में अधिकांश सक्रियता विकसित अर्थव्यवस्थाओं में देखी गई है।

कुल मिलाकर, सर्वे से यह स्पष्ट होता है कि भुगतान और निपटान का परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। डिजिटल नवाचार और टोकनाइजेशन केंद्रीय बैंकों को यह सोचने का अवसर दे रहे हैं कि केंद्रीय बैंक की मुद्रा की भूमिका भविष्य में कैसी होनी चाहिए। भारत जैसे देश के लिए यह एक शानदार अवसर है कि वह इन विभिन्न मॉडलों — CBDC, स्टेबलकॉइन और एसेट टोकनाइजेशन — के साथ प्रयोग करे और अपनी आर्थिक वृद्धि के लिए सबसे उपयुक्त रास्ता चुने।