मुख्य उद्देश्य विभिन्न कारकों के प्रभाव के कारण हो रहे जलीय पारिस्थितिकीय तंत्र में हो रहे क्षरण को रोकना कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य था
पटना, 29th July, 2024 :
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद(आईसीएआर) और कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान जोन-चार, पटना, बिहार के तत्वाधान में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें बिहार राज्य के जलीय पारिस्थितिकीय तंत्र के संरक्षण और विकास पर विचार-विमर्श किया गया। इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य विभिन्न कारकों की वजह से बिहार राज्य के जलीय परिस्थितिकीय तंत्र में हो रहे क्षरण को रोकना और इसमें कृषि विज्ञान केन्द्रों (केवीके) की भूमिका को चिन्हित करना था।
कार्यशाला के मुख्य अतिथि डॉ. रंजय कुमार सिंह, सहायक महानिदेशक (कृषि प्रसार) भाकृअनुप, नई दिल्ली ने राज्य से आए 25 कृषि विज्ञान केन्द्रों के वैज्ञानिकों को संबोधित किया। उन्होंने बताया कि आईसीएआर नई दिल्ली(भारत सरकार) का कृषि प्रसार संभाव यॉर्क विश्वविद्यालय डॉ. इलिनर जीव के साथ मिलकर जलीय पारिस्थितिकीय तंत्र और उसके आस-पास रहने वाले समुदायों के साथ समगतिशील जीविका पर एक अनुसंधान कर रहा है। डॉ. सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि भारत सरकार, जो कि रामसर अंतर-सरकारी संधि का सदस्य है, जलीय पारिस्थितिकीय तंत्र के विकास और संरक्षण के लिए विभिन्न योजनाओं और नीतियों पर काम कर रही है।
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कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान पटना के निदेशक डॉ. अंजनी कुमार सिंह के नेतृत्व में केवीके के लगभग 25 वैज्ञानिकों ने बिहार के 18 जिलों के जलीय पारिस्थितिकीय तंत्र की स्थिति का विश्लेषण प्रस्तुत किया। उन्होंने वहां की कृषि प्रणाली और समुदायों की जीविका की वर्तमान स्थिति का भी आकलन किया।
कार्यशाला में यह पाया गया कि बिहार के जलीय पारिस्थितिकीय तंत्र जलवायु परिवर्तन, भौगोलिक बदलाव और सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन के कारण क्षरण का सामना कर रहे हैं। केवीके के वैज्ञानिकों, निदेशक और मुख्य अतिथि ने इस पर जोर दिया कि समुदायों की क्षमता का विकास और कुछ तकनीकी उपायों के समावेश से जलीय तंत्र के क्षरण को रोका जा सकता है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश के जलीय पारिस्थितिकीय तंत्र पर यॉर्क विश्वविद्यालय के साथ किए गए अनुसंधान को प्रस्तुत करते हुए मुख्य अतिथि ने केवीके की गतिविधियों में इसे सम्मिलित करने का आग्रह किया। कार्यशाला का समापन सामूहिक सहभागिता बढ़ाने के दृष्टिकोण के साथ किया गया, जिससे जलीय पारिस्थितिकीय तंत्र और उससे संबंधित जीविका को नई रणनीतियों के माध्यम से सशक्त किया जा सके।
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