डॉ. रामकांत द्विवेदी ने पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय में भारत-सेंट्रल एशिया संबंधों पर दिया लेक्चर

MERI सेंटर फॉर इंटरनेशनल स्टडीज, दिल्ली के प्रमुख डॉ. रामकांत द्विवेदी ने हाल ही में पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय में “भारत के सेंट्रल एशिया में रणनीतिक हित: चुनौतियां और आगे का रास्ता” थीम पर आधारित लेक्चर दिया। सत्र का संचालन विश्वविद्यालय के उपकुलपति प्रोफेसर राघवेंद्र पी. तिवारी द्वारा किया गया। इस लेक्चर में उन्होंने भारत और सेंट्रल एशिया के बीच ऐतिहासिक, आर्थिक और रणनीतिक संबंधों पर प्रकाश डाला और इन संबंधों को कैसे मजबूत किया जा सकता है विषय पर चर्चा की।

डॉ. द्विवेदी ने अपने लेक्चर की शुरुआत भारत और सेंट्रल एशिया के बीच सदियों पुराने व्यापार और सांस्कृतिक संबंधों को रेखांकित करते हुए की। उन्होंने कहा कि इन ऐतिहासिक संबंधों का महत्व आज भी कायम है, लेकिन आज के समय में भारत के दीर्घकालिक रणनीतिक लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए मजबूत आर्थिक और राजनीतिक साझेदारी पर ध्यान केंद्रित करना जरूरी है।

डॉ. द्विवेदी ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि इस क्षेत्र में भारत के प्रति गर्मजोशी है और यहां के लोग व्यापार, शिक्षा, तकनीकी और सांस्कृतिक क्षेत्रों में भारत का साथ देने के लिए अग्रसर हैं। उन्होंने कहा: भारत की “कनेक्ट सेंट्रल एशिया” नीति इन संबंधों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है और भारत की उपस्थिति को -सेंट्रल एशिया में सुदृढ़ कर रही है।

डॉ. द्विवेदी ने सेंट्रल एशिया के समृद्ध ऊर्जा संसाधनों और रणनीतिक स्थान पर भी जोर दिया। उन्होंने “इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर” (INSTC) जैसे परियोजनाओं की महत्ता को रेखांकित किया, जो भारत और इस क्षेत्र के बीच व्यापार और कनेक्टिविटी को बढ़ा सकते हैं। उन्होंने इसके साथ ही कुछ चुनौतियों पर भी चर्चा की।

डॉ. द्विवेदी ने भारत और केंद्रीय एशिया के बीच सीधी कनेक्टिविटी की कमी को एक बड़ी चुनौती बताया, जिससे व्यापार करना मुश्किल हो जाता है। इस समस्या का समाधान सुझाते हुए, उन्होंने डिजिटल कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने और “डिजिटल हाइवेज़” विकसित करने की जरूरत पर जोर दिया। इसके अलावा, उन्होंने चाबहार बंदरगाह में भारत के निवेश को एक महत्वपूर्ण कदम बताया, जो व्यापार में आने वाली रुकावटों को कम कर सकता है और नए आर्थिक अवसरों के दरवाजे खोल सकता है।

अपने लेक्चर के अंत में, उन्होंने क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर दिया और पाकिस्तान के साथ संभावित साझेदारी को भी एक व्यावहारिक कदम बताया। उनके अनुसार, भारत और केंद्रीय एशिया के बीच मजबूत संबंध सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह पूरे क्षेत्र में स्थिरता, विकास और नए अवसरों को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण जरिया है।

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